कितने दिनों से इस कवियित्री की, उसकी कविताओं की याद आ रही थी. पियूष दईया मेरे पुराने मित्र जो आजकल ललित कला अकादमी में संपादक हैं, को भी तंग किया की 'भेजो ना हालीना की कवितायेँ ..." उधर से भी चुप्पी, खैर...
क्यों ढूँढ़ते हैं हम अच्छी कवितायेँ, कहानिया? क्यों जाते हैं सुंदर अजीबोगरीब जगहों , पहाडों पर? कभी किन्ही कुहासों, धुन्दों में खो सा जाने का मन क्यों होता है भला ?
क्यों इन सभी को हम बाहर ढूँढ़ते हैं जबकि मृगकस्तूरी की तरह यह सब हमारे भीतर मौजूद रहते हैं,
यह मेरा कौन सा मन है
जिसे मैं अपना कोई और ही मन मान रही हूँ ?
(मेरी प्रिये कवियित्री की पंक्तियाँ ) ।
चलिए इन बातों से फिर कभी कतरा कतरा भरेंगे ख़ुद को , अभी हालीना की कविता आपके साथ सांझी की जाए :
यह मेरी अन्तिम कविता है
तुम्हारे लिए ,
अब और नही लिखूंगी,
मैंने कहा।
और चिठ्ठी को ticket लगा कर बंद कर दिया ।
अपने उस चौकोर दिल को
पोस्ट बॉक्स में गिरा दिया।
अब लोग
उस पोस्ट बॉक्स के गिर्द अक्सर घूमते
और पूछते रहते हैं :
"क्या कोई चिडिया घुस गई है
पोस्ट बॉक्स के अन्दर ?
क्योंकि उसके पंख लगातार हिल रहे हैं
और लगता है की वो गा रही है "।
( हालीना पोस्विअतोव्सका )
1935-1967
wah wah wah ,"क्या कोई चिडिया घुस गई है
ReplyDeleteपोस्ट बॉक्स के अन्दर ?हालीना की कविता ji ki kavita dilko chu gayi.